Homeअज्ञेयआगन्तुक आगन्तुक शहरयार 'शहरी' अज्ञेय 14/02/2012 No Comments आँख ने देखा पर वाणी ने बखाना नहीं। भावना ने छुआ पर मन ने पहचाना नहीं। राह मैनें बहुत दिन देखी, तुम उस पर से आए भी, गए भी, –कदाचित, कई बार– पर हुआ घर आना नहीं। Tweet Pin It Related Posts पराई राहें ढूह की ओट बैठे अनुभव-परिपक्व About The Author शहरयार 'शहरी' Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.