कितने अज़नबी से मिलवाया तूने
कितनों के दिल में बसाया तूने
जो दूर थे उनको निकट लाया तूने
कितने पराये को भाई, बनाया तूने
सोचता हूँ…न जाने क्या होगा आगे
जब पुराने घर को छोड़कर जाऊँगा
मैं भूल जाता हूँ कि उस नये घर में
तू ही मिलता है, तू ही मिलेगा मुझे
जीवन-मरण में, निखिल भुवन में
तू जहाँ कहीं भी ले जाता है मुझे
केवल तू-ही-तू नज़र आता है…ओ रे
फिर कैसा भय, कहीं आने-जाने से
हर तरफ खुद को ही दर्शाया तूने
कितने पराये को भाई, बनाया तूने