मक्खन महंगा हो गया दूध दही है लुप्त।
मक्खनबाजी चल गई, मेधा कुंठित सुप्त।
मेधा कुंठित सुप्त, कहाँ उनकी है गिनती।
किया धरा बेकार सुनी जाती न विनती।
इनके आगे दुनियाभर के सब हैं ढक्कन।
पाना है कुछ मित्र चपेटो जमकर मक्खन॥
असली मक्खन है कहाँ, सिंथेटिक जब दूध
पर दुरुस्त है हाजमा, रकम हजम मय सूद
रकम हजम मय सूद , हाथ जब उनका ऊपर
काटी जमकर मौज, रोज नाचे चढ़ सर पर
मक्खनबाजी करके उपजे नेता फसली
दल बदलू जब नीति, नहीं मक्खन है असली
अति सुन्दर