करूँ न याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे
ग़ज़ल[1] बहाना करूँ और गुनगुनाऊँ उसे
वो ख़ार-ख़ार[2] है शाख़-ए-गुलाब[3] की मानिन्द[4]
मैं ज़ख़्म-ज़ख़्म[5] हूँ फिर भी गले लगाऊँ उसे
ये लोग तज़्क़िरे[6] करते हैं अपने लोगों के
मैं कैसे बात करूँ और कहाँ से लाऊँ उसे
मगर वो ज़ूदफ़रामोश[7] ज़ूद-रंज[8] भी है
कि रूठ जाये अगर याद कुछ दिलाऊँ उसे
वही जो दौलत-ए-दिल[9] है वही जो राहत-ए-जाँ[10]
तुम्हारी बात पे ऐ नासिहो[11] गँवाऊँ उसे
जो हमसफ़र[12] सर-ए-मंज़िल[13] बिछड़ रहा है “फ़राज़”
अजब[14] नहीं कि अगर याद भी न आऊँ उसे
शब्दार्थ:
- ↑ उर्दू की एक काव्य विधा
- ↑ कँटीला
- ↑ गुलाब की टहनी
- ↑ भाँति
- ↑ घावों से भरा हुआ
- ↑ चर्चाएँ
- ↑ भुलक्कड़
- ↑ शीघ्रबुरा मान जाने वाला
- ↑ दिल की पूँजी
- ↑ जीवन का सुख
- ↑ उपदेशको
- ↑ सहयात्री
- ↑ गंतव्यस्थल पर
- ↑ अचंभा