Homeशर्मनहो सकता है हो जाय ख़ता कहीं हो सकता है हो जाय ख़ता कहीं Manoj Kr. Sharma शर्मन 10/07/2012 No Comments हो सकता है हो जाय ख़ता कहीं खुदा तो होता नहीं है आदमी बार-बार जिसकी याद आती है उस शख्स का कहीं अता-पता नहीं सर पे चढ़ा जब से इश्क़ का जुनूँ उसे खोजा मैंने कहाँ-कहाँ नहीं सिर्फ एक बार देखी है सूरत मुझे हर एक आदमी लगा वही Tweet Pin It Related Posts “एक सफ़र” – दुर्गेश मिश्रा कितने बदले-बदले से तुम लगते हो अँखियाँ हरिदर्शन की प्यासी About The Author Manoj Kr. Sharma Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.