यमुना-तीरे आते-जाते
छवि हरेक दिखायी
तू ने ऐसी रीत निभायी
माखन से लेकर चित्त चोरी
तुम ने कर दिखायी
कब किसकी मानी है तू ने
की है ऐसी ठिठायी
तू ने ऐसी रीत निभायी
ऋतु जैसा बदले तू हरक्षण
सांच छवि न दिखायी
अब तो मनो निशदिन यूँ ही
सारी उमर गंवायी
तू ने ऐसी रीत निभायी
जितनी डूबी रस में पायी
उतनी गहरी खायी
सब कहते, “मुझ पर तेरी
जादूगरी छायी”,
तू ने ऐसी रीत निभायी