खेल रहा तू आँख-मिचौली
मूँदे नयन हमारे
श्याम अनेक रूप तुम्हारे
हम लगती हैं बौनी आकर
देख पास तुम्हारे
खींचकर श्यामसुंदर अपने
रस में प्राण बहा रे
श्याम अनेक रूप तुम्हारे
निर्वस्त्र सब शरण में आयीं
दया करो कान्हा रे
सब कहते, “तू पहनता है,
वस्त्र अलौकिक”, हाँ रे
श्याम अनेक रूप तुम्हारे