मिलती नहीं फुर्सत कि देखूँ बहार को
चुकता कर रहा हूँ अब-तक उधार को
क़र्ज़ मैं लिया था, बेटी के ब्याह में
न शांत कर सका दहेज के अंगार को
रख दी उनके आगे पगड़ी उतार के
समझा न सका अपने दिले-बेक़रार को
माँ-बाप ने कहा था, बेटी से दो शब्द
आना कभी न छोड़ के पिया के द्वार को
जो करार था उसे पूरा न कर सका
लग गया ग्रहण बेटी के सिंगार को