आँखों से तक़दीर को देखा
बदलती हुई लकीर को देखा
जब कभी तस्वीर को देखा
रो-रोकर तुम्हें याद किया
हो सका जितना साथ दिया
नयनों को छलकने से रोका
बूँदों को ढ़रकने से रोका
आँसुओं को बहने से रोका
कुछ पीया, कुछ बर्बाद किया
हो सका जितना साथ दिया
क्यों इतना सोहणी ने चाहा
एक महीवाल था चरवाहा
एक-दूजे ने साथ निबाहा
क्यों ‘शीरी-शीरी’ फरहाद किया
हो सका जितना साथ दिया