कभी जिंदगी में तनहा हो,
कभी जिंदगी की राहें
सुनसान हो जाये ,
मेरे घर में आना…..
और मेरे कमरे के कोने में
बंद पड़े उस अलमारी को खोलना ,
जिस पर धुल पड़ी होगी ,
कमरे में थोडा अँधेरा होगा,
पर तुम्हे जरा भी डर नहीं लगेगा,
ये वही अँधेरा है जो
तुम मेरी जिंदगी में छोड़ गई थी,
उस वक़्त से कोई दीपक जलने नहीं आया,
मेरे कमरे में,
मेरे दिल में…..
अलमारी जब तुम खोलोगी ,
खुद को सकते में पाओगी ,
वहाँ होगा सिर्फ तेरा अक्स
वहाँ कुछ ख़त रखे होंगे,
ज्यादा नहीं 992 ख़त ही होंगे,
हर ख़त में ऊपर में तेरा नाम होगा,
किसी में सोना,
किसी में अनुप्रिया तो किसी में
ओल्गा होगा …..
पर हर ख़त में मेरी आरजू होगी,
हर हर ख़त में मेरी मिन्नतें होगी ,
जो मै तुझसे शाम – ओ – सुबह
किया करता था-वापस
मेरी जिंदगी में लौट जाने को…….
वहाँ कुछ तस्वीरें भी होगी,
जो शायद तेरे पास भी होंगी,
उन तस्वीरों में तुम्हे सिर्फ अपनी
छवि नजर आएगी,
पर जब देखोगी मेरी नजरों से,
खुद के एहसास को
उन तस्वीरों में तुम पओगी……..,
हाँ,
सबसे ऊपर के दराज को खोलना,
एक तोहफा होगा
जो तुने दिया था,
शायद मेरी जिंदगी में रौशनी के लिए,
पर वो भी नही जलती है अब,
वो भी अन्धेरा देती है,
जैसा की तुम छोड़ गई हो,
मेरे तनहा जीवन में |||||||
This is my first poem published on this site.This poem was actually written in memory of someone, thanks.
अच्छी कविता है |