Homeदेवेश शास्त्रीनक़ल नक़ल देवेश शास्त्री देवेश शास्त्री 02/07/2012 No Comments खुली नक़ल से देखिये, ढेरों पाये अंक। अंकपत्र पा खुश हुए बुद्धि शून्य मन रंक॥ बुद्धिशून्य मन रंक, डंक सा मारे जग सब, खडे निरुत्तर पूछे जाते यहाँ प्रश्न जब, नजर चुराते दिखे चोर सम वही विकल से। लूटे जिसने अंक भयंकर खुली नक़ल से॥ Tweet Pin It Related Posts जयत्विष्टिकापुरी Samskrit geet कैसा हाहाकार है? नेता जी की बल्ले-बल्ले। About The Author देवेश शास्त्री Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.