क्यूँ स्वप्न सलोने जगते हैं ये
जब नन्ही परियाँ सो गयी हैं
तन व्याकुल सा समय क्या देखे
अब मन की घड़ियाँ खो गयी हैं
नीरवता में बस चीख छिपी है
माँ के नयनों में भीख दिखी है
घर की साज व सज्जा की थी
वो छोटी लड़ियाँ खो गयीं हैं
क्यूँ स्वप्न सलोने जगते हैं ये
जब नन्ही परियाँ सो गयी हैं
हम मानव बस घर में होते हैं
प्रश्न सभी चौराहे पर रोते हैं
अभिसंधि को कैसे अब पकडे
सच की हथकड़ियाँ खो गयीं हैं
क्यूँ स्वप्न सलोने जगते हैं ये
जब नन्ही परियाँ सो गयी हैं
-संजीव आर्या
ANKHON KO NAM KARTA LEKH