हम
जहाँ कहीं जाएँ
पहाड़ हमें बुलाएँगे
उनकी कोख से
फूटेंगे झरने
जिन के जल में हमारे लौटने की प्रतीक्षाएँ दर्ज होंगी
आकाश के अनंत की तरफ तनी होंगी
उन की चोंटियाँ बदस्तूर सनसनाती हुई
हवाएँ होंगी वहाँ
और निरभ्र चट्टानें जिन पर अंकित होंगे
हमारे अदृश्य पदचिह्न
लौट कर पहाड़ों से जब हम आएँगे
अपने घर
बोलते हुए
पहाड़ साथ लाएँगे
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Kavita sundar hai, dhanyawad.