जब जब भी तेरी याद मनमे उभर आई
मेरे मन खुशियाँ ही खुशियाँ भर आई
एक हसीं माहोल की तरह तू चारो और है
हर झोंके के साथ तेरी खबर रूसार आई
खुश हू आज, और खुस रहूँगा बार बार
तरी मुश्कानकी याद फिर वो करार लाइ
खुस है हम, तनहाई में भी, अकेले
बिछड़े शायद हम, तेरी यादे कभी बिछड ना पाई
आश है ये ख्वाब ख्वाहिश्ही ही न रह जाये
ये दोस्ती, ये प्रेम, मेरा जीवन बन जाये
जनक देसाई – ०७/२४/२०११