प्रतिदिन छोड़ता हूँ पीछे अपने पाँव चिन्हों की शक्ल में
जो पत्थरों पर छपते अदृश्य
कुछ क्षण वहीं ठहर कर
सोचता हूँ
जो स्थिर है क्या वह चल नहीं रहा
किसी सापेक्षिक गति में
उदाहरण के लिए
यह पत्थर
जिसे किसी मुहूर्त की प्रतीक्षा है
कि उसके भीतर फूटें कुछ बेलें और फूल
मैं ठिठकूँ उसे देख कर और कहूँ
हर बार किसी वसन्त का कारण नहीं हूँ मैं