दिल तेरा मुझको लगा दर्पण कोई,
मैं यूँ ही करता रहा दर्षन कोई।
दोस्ती मुझको तेरी खलने लगी,
बीच में जो आ गया चिलमन कोई।
जुल्मतों से चूर तपती ज़िन्दगी,
आज तो बरसे यहाँ सावन कोई।
आज फिर राधा की फड़की आँख है,
आज फिर व्याकुल हुआ है मन कोई।
किस कदर यादें ही यादें आ गई,
जब मुझे छू कर गया दामन कोई।
लोरियाँ माँ की सुनाई दी मुझे,
याद मुझको आ गया बचपन कोई।
हल कोई आषीश मिलता ही नहीं,
ज़िद पे आ जाती है जो उलझन कोई।
— आषीश दषोत्तर
वाह जी …….उतम