जूतों में भरे अंधकार के लिए चुप रहती हैं जीवन भर सड़कें
लेटते हुए बिस्तर पर कौन याद रखता है उसका माप
किताब में किसी भी पृष्ठ पर प्रकाशित
दिख जाता है लेखक का काल
खदकती हुई देगची घर के हाज़मे की दुरुस्ती का
देती रहती है पता
रोशनदान चटखते हैं सिर्फ़
या बदलते हैं कभी-कभार डाक के पते
अपनी नींव पर टिका हर बार मिलता है
उसी अक्षांश और देशान्तर में लगातार
खिड़की की आकृति में पेड़ को यहाँ चैकोर बना लिया गया है
प्रतिदिन मैला होने में दिलचस्पी है जिस कमीज़ की
उसका रंग हमारी बैठक की दीवारों जैसा हल्का नीला है
साबुनदानियाँ निरीह पौष में ठिठुरती हैं
जलते हैं फर्श जून के ज्वर में
शिकायत नहीं करती अलमारी
तब भी जब क्षमता से ज़्यादा भरा जा रहा होता है उसे
जानती हैं दवाई की भूरी शीशियाँ
उनका मारकेश है किसी का फिर स्वस्थ हो जाना
बेजान चीज़ों से भरी अनूठी है
संसार की आत्मा
संतुष्ट हैं हम काम कर रहे हैं बदस्तूर मशीन के कल-पुर्जे
हर रात रखते तकिये पर अपना सिर
यह जान कर प्रसन्न होता हूँ
तकिया नहीं तकिये की संज्ञा में यह
बुने हुए सूत और रुई की नायाब जुगलबन्दी है