गाँवों की पगडंडियों पर मुझे घुमाते, मेरे पापा.
चार आने की चार टाफियां खिलाते, मेरे पापा..
पकड के उँगली मुझे स्कूल ले जाते, मेरे पापा.
बचपन में ही डाक्टर, इंजीनियर बनाते, मेरे पापा..
मेरी गलतियों पर मुझे चपत लगाते, मेरे पापा.
कुछ अच्छा करने पर पीठ थपथपाते, मेरे पापा..
जब कुछ बडा हुआ गलत सही समझाते, मेरे पापा.
दुनियां के हर शय से परिचित कराते, मेरे पापा..
अब मैं बडा हो गया हूँ,
अपने पैरों पर खडा हो गया हूँ.
तो बस यही सोचता हूँ,
क्या मैं बन पाउँगा, जैसे हैं मेरे पापा?
क्या मैं अपने बच्चे को वो सब दे पाउँगा?
क्या मैं मेरे पापा की तरह अच्छा पापा बन पाउँगा??
क्या मैं बन पाउँगा,
मेरे बच्चे के लिए…
मेरे पापा….
How nice is your poem. This is incredible
Thanks for your appreciation…
अच्छा ही नहीं बल्कि दिल से लिखा अपने अति सुन्दर
धन्यवाद…