कड़ी धूप और सनसनाती लू के बीच
खुले हुए ट्रकों में लाद कर
भेज दिए जाते हैं वे इसी तरह हर बार
लोहे के बक्सों और थैलों के साथ
उनके असबाब में चुपचाप शामिल होती हैं
कुछ पूडि़याँ
अमृतधारा की शीशी
और
बेबसी
हर बार वे ही बनवाते हैं सरकारें
और
प्राथमिक पाठशालां की
जलती हुई लालटेन में
रबर की मोहरें ढूंढते हैं
नींद नहीं आती उन्हें चुनाव की रात से पहले
भारतीय दण्ड संहिता की सारी धाराओं के बावजूद
उड़ती हुई धूल-धक्कड़ में
लौट कर आते हैं वे जब हमेशा
हारे हुए विजेताओं की तरह
बढ़ जाती है उनकी दाढ़ी
. . .इंतजार करती बीवियाँ उसी रात
जान पाती है
पीठासीन अधिकारी की शक्तियाँ।
Nice Poem and it’s is relevant in this modern world and society.