सवैयाविष्णुपदी शिवशीश सुशोभित आर्यधरा
शुचि पोषक गंगा रोग निवारक साधक के हित
पुण्य पवित्र सुयोजक गंगा निर्मल निर्झर धार बहे
वह थी अपशिष्ट सुशोधक गंगाक्षालन
पाप किया इतना शुचिताअब खोकर भौचक गंगा
कुण्डलिया गंगा की बहती रहे निर्मल निर्झर धार माँ
सुरसरि करती रहे सुजनों का उद्धार
सुजनों का उद्धार तभी अब हो पायेगा
दूषण का अभियान यहाँ जब रुक जायेगा
करे आचमन नित्य वही होता था चंगा
रोगग्रस्त है आज नहाया जो भी गंगा
— रचनाकार डॉ आशुतोष वाजपेयी
कवि एवं ज्योतिषाचार्य लखनऊ