Homeअज्ञेयकिरण अब मुझ पर झरी किरण अब मुझ पर झरी शहरयार 'शहरी' अज्ञेय 14/02/2012 No Comments किरण अब मुझ पर झरी मैंने कहा : मैं वज्र कठोर हूँ- पत्थर सनातन । किरण बोली : भला ? ऐसा ! तुम्हीं को तो खोजती थी मैं : तुम्हीं से मंदिर गढूँगी तुम्हारे अन्तःकरण से तेज की प्रतिमा उकेरूँगी । स्तब्ध मुझ को किरण ने अनुराग से दुलरा लिया । Tweet Pin It Related Posts वन झरने की धार वन में एक झरना बहता है / अज्ञेय जब पपीहे ने पुकारा About The Author शहरयार 'शहरी' Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.