ये सज़ा मिली मुझको तुमसे दिल लगाने की
मिल रही हें बस मुझको ठोकरें ज़माने की
फैसला हे ये मेरा मैं तुम्हें भुला दूंगा
तुमको भी इजाज़त हे मुझको भूल जाने की
ख़ाब अब मुहब्बत के मैं कभी न देखूँगा
ताब ही नहीं मुझमे फिर से ज़ख्म खाने की
रह गयी उदासी हीअब तो मेरे हिस्से में
अब वजह नहीं कोई मेरे मुस्कुराने की
वो चले गए लेकिन हम न कुछ भी कह पाए
दिल में रह गयी हसरत हाले दिल बताने की
शनिवार 16/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. आपके सुझावों का स्वागत है . धन्यवाद!
भाव तो बहुत सुंदर हैं किंतु आप तो सीखे हुए हैं रदीफ़, काफ़िये के बारे में क्या विचार हैं आपके?
खूबसूरत रचना …
बहुत ही उम्दा
सादर
बहुत खूब।
वो चले गए लेकिन हम न कुछ भी कह पाएदिल में रह गयी हसरत हाले दिल बताने कीबहुत खूब …!!!
वो चले गए लेकिन हम न कुछ भी कह पाएदिल में रह गयी हसरत हाले दिल बताने कीबहुत खूब …!!!