अभी सदाएं उसे न देना ,अभी वो राह से गुज़र रहा है
कदम हसीं वो जहाँ भी रखे , वहीँ ज़माना ठहर रहा है
अगर जान लेले तो गम नहीं है , उसूल है ये मुहब्बतों का
हर इक नज़र से वो क़त्ल करता ,मुझे यही बस अखर रहा है
ज़मीं पे ये चांदनी क्यूँ फैली , सितारे क्यूँ पालकी में बैठे
हैं चाँद रोशन कुछ तो जियादा ,कहीं तो वो भी संवर रहा है
ज़मीं पे कब ख्वाहिशे हो पूरी ,नहीं मिलेगा खुदा से बढ़ कर
वो ज़ोर-ए-बाज़ू से न डरा है , दुआ जो हाथो से कर रहा है
हिकारतों से मुझे न देखो , शहरयार था मैं अपनी माँ का
अभी तो रस्तों पे सो रहा हूँ , कभी तो मेरा भी घर रहा है
-संजीव आर्या
अर्थ:
1. सदाएं – आवाज़
2. हिकारत – घृणा
3. शहरयार- कुंवर, राजकुमार