दुनिया से छिप कर गली वाले नीम पर आने का वादा तो करो
वो नीम कड़वा ही सही पर गवाह है तेरी मेरी मुलाकातों का
कुछ अमर गीतों और बेपनाह मुहब्बत से भरे जज्बातों का
वो रात सर्द ही सही पर देखा है उसने तमन्नाओं को मचलते
कांपती उँगलियों सहमे होंठ और फिर हौले से चाँद को ढलते
वो लम्हा बेदर्द ही सही पर उसमे तुम्हारे दीदार का बहाना तो है
कुछ हो ना हो इस फकीर के पास तुम जैसे खज़ाना तो है
बस घर जाने से पहले कल फिर मिलने का वादा तो करो
दुनिया से छिप कर गली वाले नीम पर आने का वादा तो करो
इस शहर से दूर नहर वाले बागीचे में आने का वादा तो करो
वो बागीचा सेहरा ही सही पर अमीरी है उसमे अपने ख्वाबों की
जुल्फों से मखमल घांस और तुम्हारी खुशबू से महके गुलाबों की
वो गलियाँ वीरान ही सही रौनक है वहां धडकनों की अठखेलियों से
बिंदिया,झुमके कंगना,पायल और ना जाने कितनी ही सहेलियों से
वो पहर छोटा ही सही तमाम उम्र के फ़साने हैं उन कुछ एक पलों में
हमारे पाँव के निशाँ और साँसों की याद हैं इन वादियों के दिलों में
बस घर जाने से पहले कल फिर मिलने का वादा तो करो
इस शहर से दूर नहर वाले बागीचे में आने का वादा तो करो
आरज़ू जुडी हैं तुमसे इसलिए कहीं ना जाने का वादा तो करो
राह कितनी भी मुश्किल हो मिलेगी मंजिल ये यकीन है
बस एक बार मेरे संग संग जीने का इरादा तो करो
बस घर जाने से पहले कल फिर मिलने का वादा तो करो
— शिवेंद्र