तुम न आये तो तुम्हारी यादों से मन बहला लिया
कागज़ के उन टुकड़ों को फिर दिल से लगा लिया
कशिश कहीं शोला न बन जाये इस हसीं रात में
इस डर से हमने एक चिराग फिर सीने में जला लिया
तुम न आये तो तुम्हारी यादों से मन बहला लिया
कागज़ के उन टुकड़ों को फिर दिल से लगा लिया
तकते रहे किवाड़ों की ओट से हर रौशनी को हम
इंतज़ार में हमने आहटों को पलकों पर सजा लिया
ये रात है या नीली शबनम की सुराही में जाम
इसी उलझन में हमने चाँद को होठों से लगा लिया
तुम न आये तो तुम्हारी यादों से मन बहला लिया
कागज़ के उन टुकड़ों को फिर दिल से लगा लिया
थक आकर शतरंज को अपना साथी बना लिया
और खुद मोहरों ने हमें अपना गुलाम करा लिया
कहीं हो न जाती तौहीन-ए-मुहब्बत इस कशमकश में
हमने तुम्हारी जीत को अपनी हार के सेहरा बना लिया
तुम न आये तो तुम्हारी यादों से मन बहला लिया
कागज़ के उन टुकड़ों को फिर दिल से लगा लिया