नमस्कार ! आप कैसे हैं ?
1
इसी तरह घटित होता है दिन।
आवाजें रोशनी के भीतर से निकल कर किसी सोए हुए
ब्रह्मांड को जगाती हैं।
अंधेरे और नींद की परछाइयां ज्यों ही गायब होती हैं
हमें एक तालाब से बाहर निकल आने का अनुभव होता है।
कुछ क्रियाएं उसके बाद प्रायः निश्चित सी हैं जिन्हें
सामाजीकरण की प्रक्रिया से हम सीख लेते हैं।
हमें आदतों और कपड़ों की आदत पड़ जाती है
और इस तरह बहुत सारे वर्ष स्नानगृह में चले जाते हैं।
रोटियों का स्वाद और आजीविका के दुःख।
लोगों से मिलना-जुलना और यात्राएँ।
आहत महत्वाकांक्षाओं से पैदा होने वाले आंसू।
अदृश्य खुशियां और प्रतीक्षाएँ।
पर सचमुच वह कोई जीवन नहीं होता।
पृथ्वी पर इतना कुछ बदल जाने के बाद भी।
हम किस तरह अपने को जानते हैं?
सवाल यह है कि कवि आखिर किस पदार्थ का बना है
यह संसार इतनी आसानी से पीछा नहीं छोड़ने वाला।
पर इसमें लगातार इतना सम्मोहन आखिर किस रंग और प्रकाश
की वजह से है? और वह क्या है जिसे में स्थगित करता हूँ ?
हर बार। बार-बार।
2
अभी अभी तुम थे और नहीं हो।
इतना अधिक बोझ। उम्मीदें। वगैरह। वगैरह।
दोपहर। शाम। रात।
नहीं, यह घटित होना नहीं है।
तब क्या मैं कह सकता हूँ कि वह क्या है
जिसे साफ-साफ मैं जानता हूँ और कह सकता हूँ ?
वहीं का वहीं है यह सवाल। हर बार।
और इसका सीधा सरल जवाब नहीं दिया जा सकता
किसी शब्द से
यह भी मुझे पता है।
3
तब मुझे और आपको उस धातु की खोज करनी चाहिये
जिससे कवि बने होते हैं।
kya baat hai
by Ghar Ka Vaidya