साहस
जब लगी अमावस खीजने
और लगे पात सब झरने
उफान लहरों का जब लगा शौर्य पूछने
तिनका बन बन लगे घोंसले टूटने
डालियाँ चर्मरायीं और लगे प्राण सूखने
तभी चिड़िया की एक बच्ची ने दम भरा
और लगी अपने नन्हे पंखों से उड़ना सीखने…..
जब शैवालों की चादर से लगा तालाब भरने
पत्तों और शाखाओं से लगा जल पटने
कीचड़ और दलदल में लगा फिर जीवन धंसने
गतिहीन वन देवी लगी झुलस कर तड़पने
तभी एक कमल के छोटे पौधे ने दम भर
और लगा इन आपदाओं के बीच खिलने…..
सर्द कुहासी रातों में जब लगी जली काठ बुझने
चूल्हा फिर फिर हाथ जोड़ लगा विस्मय भरने
शीत जब काल बना और लगा वज्र बरसने
ममता प्रकृति की जब लगी शौर्य परखने
तभी एक अनबुझी चिंगारी ने दम भरा
और लगी अग्नि प्रज्जवलित करने …..
——– शिवेंद्र