बस तुझे देख कर…
तुम्हारी साँसों से बसंत महक उठी
और हाथों की हीना दमक उठी
शर्म सिमट कर हुई पाहुन
और काजल की कोर छलक उठी
यौवन ने मचलना छोड़ दिया
कुमकुम भी लजाकर भीग गयी
बस तुझे देख कर…
रांझे बैरागी बन गए और बैरागी रांझे
बस तुझे देख कर…
सौ सौ सितारे फीके पड़े
हर चाल पर पत्थर बोल पड़ा
सूनी राह मुसाफिर गीर हुई
खंडहरों की वीरानियों से
मुर्दा बुतों की नक्काशियों तक
हर ओर तमन्नाएँ डोल पड़ी
बस तुझे देख कर…
बादशाह फकीर हो गए और फकीर बादशाह
बस तुझे देख कर…..
वख्त भटक कर ठहर गया
बुलबुल भी चहकना भूल गयी
नयनों के तिलिस्म के जादू में
बदल भी गरजना भूल गए
मौसम को बदलना याद नहीं
सावन को बरसना रास नहीं
बस तुझे देख कर…..
महल खाक हो गए और ख़ाक महल
बस तुझे देख कर…..
——शिवेंद्र