कहीं छलक न जाएँ इन आंसुओं की डोली
सुन ले न ज़माना इन सिसकियों को
हो ना जाए गीली कहीं बचपन की ठिठोली
नज़र न लग जाए कहीं इन हिचकियों को
मैं अपने पलकों की गलियों में पहरा लगाए बैठी हूँ
मैं मेहँदी लगाए बैठी हूँ ….
शामियाने में कर दिया कैद बचपन के राजा रानी
शहनाई बन गयीं आज अम्मा की सुरीली लोरियां
निष्ठुर संयम ने चीन ली छुटकी की मनमानी
रस्मों ने चुरा ली मेरी सारी खिलौनों की तिजोरियां
अपनी उन सारी अटखेलियों को लाज का घूंघट पहनाए बैठी हूँ
मैं मेहँदी लगाए बैठी हूँ ….
बस भोर तक का सारा गठबंधन है इस घरोंदे से
बिछड़ के दुबारा यह आँगन पराया हो जाएगा
पुकारूंगी जो कभी माँ बाबा को रूंधे गले से
दौड़ कर वह नन्हा सा बचपन लौट आएगा .
इसी अनमने मन से होठों पर मुस्कान सजाये बैठी हूँ
मैं मेहँदी लगाए बैठी हूँ
beautiful..touching