Homeजगदीश व्योमताँका ताँका राजेन्द्र यादव जगदीश व्योम 12/05/2012 No Comments हरी दूब-सी छाया बरगद-सी सदा पावन माँ कभी रामायण और कभी गीता-सी। नदी बनती कभी बनती धूप कभी बदली माँ पावन गंगोत्री जल से भी पतली। ढल जाती है घुल मिल जाती है माँ तो माँ ही है प्यार का खजाना है वेदों ने बखाना है। – डॉ. जगदीश व्योम Tweet Pin It Related Posts इतने आरोप न थोपो अक्षर सूरज इतना लाल हुआ About The Author राजेन्द्र यादव Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.