खूने जिगर से लिख रहा हूं आखिरी सलाम
इल्तजा बस जरा सी कबूल इसको कर लेना।
इन्तजार करते करते हो गई इंतहा इंतजार की
दिले खयाल तब आया नहीं नसीब में तेरा दीदार होना।
जीते जी ना सही जब हो जाऊं सुपुर्दे खाक मैं
मजार पर आके मेरी अश्क दो बहा लेना।
तेरे दो अश्क ही मेरी मुहब्बत का ईनाम होंगे
मैं न सही मेरी कब्र के ही संग दो पल बिता लेना।
तेरी नफ़रत ही बनती गयी मेरी मुहब्बत का सबब
हो सके तो जरूर इसे अपनी कड़वी यादों बसा लेना।
खत्म हुये शिकवे गिले अब अलविदा तुझे कहता हूं
जब उठेगा जनाजा मेरा बस इक नजर डाल लेना।
चलो मैं हो गया रुखसत अब तेरे इस जहां से
जाकर कहूंगा ऐ खुदा मेरी मुहब्बत को आबाद रखना।
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पूनम श्रीवास्तव
Bahut badhiyan hain.