बया आज उदास है
नहीं गा रही वह आज
एक भी गाना
नहीं दिया उसने अभी तक
बच्चों को अपने
पानी दाना।
नहीं फ़ड़फ़ड़ाए उसने
अपने पंख
एक बार भी
नहीं खुजलाया उसने
अपनी चोंच को
शीशे के फ़्रेम पर एक बर भी।
वह देख रही है बस
एक टक
लगातार
निश्चल भयभीत
बेबस और
सहमी हुई आंखों से
अपनी ओर धीरे धीरे
बढ़ते चले आ रहे
विशालकाय
लौहमानव की ओर।
जो अपनी लम्बी भुजाएं ताने
नुकीले पंजों को हवा में लहराता
और अपनी जीभ को लपलपाता
सारे जंगलों की हरियाली
पहाड़ों की ऊंचाई
और नदियों की गहराई
को रौंदता कुचलता
बढ़ा आ रहा है
उसी की ओर
लगातार लगातार।
बया आज उदास है।
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हेमन्त कुमार