जब –
बीमार अस्पताल की
बीमार खाट पर पडी – पडी
मेरी बूढ़ी बीमार माँ
खांस रही थी बेतहाशा
तब महसूस रहा था मैं
कि, कैसे –
मौत से जूझती है एक आम औरत ।
कल की हीं तो बात है
जब लिपटते हुये माँ से
मैंने कहा था , कि –
माँ, घवराओ नही ठीक हो जाएगा सब ….. ।
सुनकर चौंक गयी माँ एकवारगी
बहने लगे लोर बेतरतीब
सन् हो गया माथा
और, माँ के थरथराते होंठों से
फूट पडे ये शब्द –
“क्या ठीक हो जाएगा बेटा !
यह अस्पताल ,
यह डॉक्टर ,
या फिर मेरा दर्द ……..?
कल 05/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
थोड़े शब्दों में इतना बड़ा सन्देश! बेहतरीन अभिव्यक्ति
“क्या ठीक हो जाएगा बेटा !
यह अस्पताल ,
यह डॉक्टर ,
या फिर मेरा दर्द ……..?
..sateek chintrakan… ..aam jan kis tarah jhujhte hain kaash yah karta dharta samjh sakte..
bahut sarthak prerak rachna..aabhar!