Homeनीरज दइयागुड़िया-10 गुड़िया-10 विनय कुमार नीरज दइया 19/04/2012 No Comments उस सागर में डूबने की चाह लिए मेरा मन आज बेचैन है जानता हूँ चैन उसे भी नहीं मगर वह सीमा में बंधी है एक बार बस एक बार भरपूर कर के प्यार डूब के जीना चाहता हूँ दूसरे शब्दों में मर कर भी उसे जिंदा चाहता हूँ । Tweet Pin It Related Posts निर्वासन बिना शब्दों के घणी अबखाई है About The Author विनय कुमार Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.