Homeनवनीत शर्मावहम जब भी यक़ीन हो जाएँ वहम जब भी यक़ीन हो जाएँ विनय कुमार नवनीत शर्मा 07/04/2012 No Comments वहम जब भी यक़ीन हो जाएँ हौसले सब ज़मीन हो जाएँ ख़्वाब कुछ बेहतरीन हो जाएँ सच अगर बदतरीन हो जाएँ ना—नुकर की वो संकरी गलियाँ हम कहाँ तक महीन हो जाएँ ख़ुद से कटते हैं और मरते हैं लोग जब भी मशीन हो जाएँ आपको आप ही उठाएँगे चाहे वृश्चिक या मीन हो जाएँ. Tweet Pin It Related Posts चिड़ियाँ -1 कृपया ठुँग न मारें -5 बदल दी चोट खाए बाज़ुओं ने धार चुटकी में About The Author विनय कुमार Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.