Homeनवनीत शर्मापिता जी ( शब्दांजलि-३) पिता जी ( शब्दांजलि-३) विनय कुमार नवनीत शर्मा 07/04/2012 No Comments ख़ूब लड़ी वह जेब सरसों के तेल की धार से कोयले की बोरी ले कर लड़ते रहे वे हाथ जाड़ों से । पिता सोए बड़के की फीस के हिज्जे गुनते मंझले की मंजिल पर नींद में बुड़बुड़ाते और सुबह से भी पहले जाग उठते छोटा अभी बहुत ही छोटा है बड़ा होगा न जाने कब. Tweet Pin It Related Posts सुन पहाड़ तुम्हारे शहर की बस चिड़ियाँ -1 About The Author विनय कुमार Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.