Homeनवनीत शर्मापिता जी ( शब्दांजलि-२) पिता जी ( शब्दांजलि-२) विनय कुमार नवनीत शर्मा 07/04/2012 No Comments वक्त की चोट से हिले हैं कब्ज़े खिड़कियों के खुली हवा का चाव पूरा हो गया घर मगर कितना अधूरा हो गया अब छत नहीं मिलती शब्द जहां उतार देते थे रोगन भाव भी वह बिस्तर खाली है। Tweet Pin It Related Posts कविता में सब महफ़ूज़ है पिता जी ( शब्दांजलि-३) चिड़ियाँ -2 About The Author विनय कुमार Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.