त्राहि त्राहि मच गई
किरण कपूर गुलाटी
त्राहि त्राहि मच ग़ई
कैसा यह करोना आया
नज़र किसी को यह ना आए
पर अजब गजब की आफ़त लाए
देख ना पाए इसे नज़र हमारी
सारी सूझ बूझ भी लगे बेचारी
एक से एक एटम बम्ब बनाए
घेरे इंसानियत के सारे गिराए
नुमाईश वैज्ञानिकों की धरी रह गई
अनदेखी ताक़त इंसानों से कुछ कह गई
बंद करो यह छेड़ा खानी
ना क़ुदरत से खिलवाड़ करो
अंबार लाशों के लग गए हैं
त्राहि त्राहि चहुँ ओर पसरी है
ये गये वो गये शोर मचा है
सरहदों की भाषा ना समझे करोना
कहे इंसानों से जो किया है भरो ना
और और से जी जो भरता
इंसानियत को शर्मिंदा करोना ना करता
देता नहीं दिखायी जो
मचाए तबाही रुलाए जो
हमें औक़ात हमारी बताए जो
है इक ईशारा परम शक्ती का
विनाश की कहानी हमने खुद लिखी
भेद क़ुदरत के हर तरह से खोले
तरह तरह के विषैले घोल हैं घोले
अब बाण हाथों से निकल चुका है
क्या होगा अंजाम किसे पता है
खेल नफ़रतों के अभी रुके नहीं हैं
क़ुदरत के आगे अभी झुके नहीं है
समझें खुद को हम बड़ा सयाना
हमें खोज अपनी पर नाज़ बड़ा है
परम शक्ती के आगे आज
बौना इंसान झुका पड़ा है
मची है त्राहि त्राहि अब तो
शर्मिन्दा इन्सान अब मौन खड़ा है
रचना पठनीय,
कुदरत मार ने कर दिया बेहाल
मानव कल्याण करने को तैयार
पहले और बाद में क्या होगा हाल
हम सभी साथ लेकर चले न चाल।
कल्याण करने की कोशिश हो आज
वरना प्रकृति सबको कर देगी बेहाल।
सुख मंगल सिंह अवध निवासी