मेरे इस हथेली में समा जाती थी,
पोपले मुंह से मुस्कराकर मेरा हर
ग़म,हर थकन मिटा देती थी ।
एक दिन नन्हें हाथो और नन्हें पैरों से
इस हथेली में चलते चलते गिर पड़ी ,
मै झुकता,इससे पहले वो खड़ी हो गई ,
बोली -मत झुकिये आप,
मै बड़ी हो गई ॥
दो कहानी संग्रह क्रमशः "सूरजमुखी " और "kanyabhoj" वर्ष 2013 एवं 2019 में प्रकाशित हो चुकी है. दोनों ही पुस्तकों को भारत सरकार रेल मंत्रालय द्वारा प्रेमचंद पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया है .
विभिन्न मंचो पर अपनी उपस्थित देते रहते है.
bahut hi sundar kavita hai
maine bhi beti ke uper ek kavita likhi hai jiska link me de rahi hoon
https://meaurmerirachnayen.blogspot.com/2021/01/pyari%20beti.html