है पूरा जुड़ा तो कोई नहीं,
हम सब थोड़े से टूटे हैं |
कुछ ग़म है अपने साथ लिए,
और कुछ जो पीछे छूटे हैं |
हर दिल में कोई दास्ताँ,
जो लबों तक आकर रुकी सी है |
कुछ धुंधली-धुंधली यादें हैं,
आँखों में जो छुपी सी हैं |
हैं दिल पर छाले ताज़े से,
जज़्बात भी हैं लहू-लुहान |
थक-हार के बैठे डाली पे,
भूल कर ऊंची उड़ान |
तो क्या गर हम टूटे हैं,
दिल आज भी एक परिंदा है |
गिर-गिर कर भी उठते हैं,
हौसले हमारे ज़िंदा हैं |
है पूरा जुड़ा तो कोई नहीं,
हम सब थोड़े से टूटे हैं |
कुछ ग़म है अपने साथ लिए,
और कुछ जो पीछे छूटे हैं |
Nice poem Garima JI
Thank you so much Kiran ji
Very nice poem, Garima! You have a great talent!
Thank you so much sir