निकल पड़ता हूँ राह में
चिलचिलाती धूप में, घनघनाते मेघ में
सपने आँखो मे लिये
किस्से कुछ कहे, अनकहे
मै बढ रहा हूँ एक वेग से
रास्ता कुछ कह रहा
मंजिल की ओर बढ रहा
फ़ूल मिलेंगे कहीं, तो
कांटे मिलेंगे राह में
न आसान ये राह हुयी
न मंजिल कुछ पास हुयी
बांध उम्मीदो के पोटले
निकल पड़ा हूँ सपने ढूंढने
छाले पान्व में पड़ गये
घाव दिल के बढ गये
कुछ नरम मै पड़ गया
पर फ़िर से ज़िद पर अड गया
निकल पड़ता हूँ राह में
चिलचिलाती धूप में, घनघनाते मेघ में