माँ थोड़ा सा घबराती हूँ मैं,
दुनिया से डर जाती हूँ मैं
रात बड़ी प्यारी लगती है,
सन्नाटे से बेचैनी होती है
मैं क्यूँ न निकलूँ रातों को,
फिर क्यूँ न लौटू रातों को
वो लोग बदल क्यूँ जाते हैं,
बेटी सी पर तरस न खाते हैं
माँ चीख सुने ये धरती फिर,
क्यूँ न ये वही फट जाती है…
चंदा मामा भी रहते हैं,
वो क्यूँ न फिर मदद करते हैं
हर युग में कृष्ण नहीं आते,
या कौरव सब बन जाते हैं
माँ दुनिया की नजरें मुझ पर,
अंगार की तरह क्यूँ लगती है
क्या मेरी इतनी गलती थी??
मैं रात को बाहर जाती थी
मैं भी टहलना चाहती थी,
दुनिया को जीना चाहती थी,
छोटे से सपने थे मेरे,
क्या यही थी गलती माँ मेरी.
माँ बेटी और बेटों में फर्क़ नहीं करवाते हैं
ये दुनिया वाले ज्ञान की इतनी बातें करते हैं
तो ये समाज अपनाये न,
खुशियों से गले लगाये न,
माँ दुनिया मतलब की होती है,
ये बात सिखा दी दुनिया ने,
माँ पापा की थी जान सदा मैं,
तेरी भी मैं जान रहूंगी.
अब जाती हूँ माँ💔..