(ताटंक छंद आधारि)
कोई गोरी ऐसी मिले
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कोई गोरी ऐसी मिले जो, मेरे दिल की रानी हो
चतुर चपल चंचल हो चितवन, सुंदरता की नानी हो,
देव लोक में धूम मचाती, काम देव पर भारी हो
नयनो की भाषा में बोले ,छवि अनुपम मनोहारी हो !!
सागर के अंतस्तल में, नाव प्रीत की जाती हो,
लहरों सी लेती अंगड़ाई, शोलो को भड़काती हो,
नदियों सी लहरा के चलती, गीत ख़ुशी के गाती हो
गिरती झरनो की धारा में, वो मदिरा छलकाती हो !!
वसंत ऋतु में मतवाली, कोयल जैसे गाती हो,
सूरज की आभा में अपना, स्वर्ण रूप दमकाती हो
अँधेरी रातो में आकर, चाँद रूप दिखलाती हो
चलती फिरती नागिन कोई,आँचल फन फैलाती हो !!
खेतो में जैसे बाली झूमे, चूनर जिसकी धानी हो
मयूरा नाचते उपवन में, ज्यों करते अगवानी हो
मादकता में ऐसे मटके, पत्थर पानी पानी हो
मेरे पर मर मिटती जाए, मस्ती मे मस्तानी हो !!
काम देव भी शर्मा जाए, लज्जा रति को आती हो
सरगम की तानो में बस, साज नया बन जाती हो
तीन लोक में चर्चे उसके, सबका चैन चुराते हो
जब बैठे मेरी बाहो में, देख देख सब ललचाते हो !!
चाहत मेरी भी ऐसी है, साथी भोली भाली हो,
सुंदरता की मूरत जिसके, होठो पर लाली हो
संग संग बीबी के मेरी, इक प्यारी सी साली हो
चाहत मेरी भी बस इतनी, प्रेम भरी जिंदगानी हो !!
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स्वरचित डी के निवातिया
अद्भुत सर
एक अलग ही विधा है आपकी कविता की ।
तहदिल शुक्रिया आपका