रात के शहर में,
नींद की गली से गुजरते हुए,
पलकों की चौखट पर,
हलके से आ बैठता है,
यूँ स्वप्न जनम लेता है।
कभी लोरी सा सुलाता है,
काली रात सा डराता है।
कहानी सा चलता है,
शीशे सा टूटता है ।
खयालों में पनपता है,
हक़ीक़त से छिपता है।
बिन-बुलाए मेहमान सा,
अनंत-असीम तान सा।
घोड़े पे सवार सुलतान सा,
बहस में खींचतान सा।
बिगड़ी हुयी संतान सा,
कमान से निकले बाण सा।
रात के शहर में,
नींद की गली से गुजरते हुए,
पलकों की चौखट पर,
हलके से आ बैठता है,
यूँ स्वप्न जनम लेता है।
SUPER
Thank you 🙂
Ati sundar rachna
Dhanyawad
Garima, a Very beautiful poem! Great nice choice of words!
Thanks a lot Mr Dravida