नहीं तो जाने क्या होगा। kiran kapur gulati किरन कपूर गुलाटी
पहचानें इक दूजे को हम,
ऐसे होने इंसान चाहिए .
मैं मेरे से उठ जाएँ ऊपर,
कुछ ऐसे होने काम चाहिए.
कितनी गोदें उजड़ गयीं
लाल कितने शहीद हो गए
मैं और मेरा कहते २
जाने क्या क्या खेल हो गए
लेकर आड़ धर्मों की जब
ज़हर नफरतों का बटने लगे
जब इक जुनून की ख़ातिर
इंसानियत बलि चढ़ने लगे
आंसू भरी आँखों में
जब खून भी उतरने लगे
समझ लेना अन्त अब दूर नहीं
जाने खेल कैसा हम खेल रहें
दहलाती कुदरत को भी झेल रहें
सहलाबों की भी होड़ लगी है
धरती डग मग डोल रही है
इंसानो से कुछ बोल रही है
लावा कहीं जो फट पड़ा
तो परलय का मंज़र क्या होगा
जिनके दम पर इतरातें हैं हम
उन बम्ब विस्फोटों का क्या होगा
जिस धरती मां पर पनपे हम
ऊस धरती माँ का क्या होगा
है समय अभी संभल जाओ
नहीं तो जाने क्या होगा
सबक इंसानियत का भूल गए
तो दिन ऐसा भी आएगा
इक दूजे का पीकर खून
इंसान बहुत इतरायेगा
शर्मसार होगी इंसानियत
आसमाँ क़हर बरसायेगा
है समय अभी संभल जाओ
नहीं तो जाने क्या होगा
सत्य कहा आपने …………….. अति सुंदर अभिव्यक्ति !!
Thanks Nivatiya JI