कुछ बताया जा रहा है।
कुछ छुपाया जा रहा है।
बन न पाए उनसे हम तो
पर बनाया जा रहा है।
दर्द देकर बिन दवा के
चुप कराया जा रहा है।
ज़ख़्म लाखों दे चुका पर
इक गिनाया जा रहा है।
कुछ गलत है ठीक है सब
यूँ बताया जा रहा है।
झूठ की शैतानियां हैं
सच दबाया जा रहा है।
छूट पहले दे दी सबको
अब डराया जा रहा है।
जो न उसका उसपे भी अब
हक जताया जा रहा है।
गीत फिर से प्यार वाला
गुनगुनाया जा रहा है।
हरदीप बिरदी
वाह बहुत खूबसूरत …………………….अच्छी ग़ज़ल आपकी !!