तुम किसके सपने में चले गये शान्तनु !
तुम किसके सपने में चले गये शान्तनु !
आँखों में भर आया है इतना पानी
डूबते ही जा रहे हैं सारे सपने
ठिठकी हुई हैं पूरे कुटुम्ब की पलकें
ढह रहा है हमारे धीरज का पुल
पटरी से उतरे
खाली डिब्बों की खिड़कियों जैसे
देख रहे हैं हम एक-दूसरे को
नहीं मिल रहा हमारा खोया हुआ सामान
हमारे सपने की रेलगाड़ी से उतरकर
तुम किसके सपने में चले गये शान्तनु !
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