Homeधनंजय सिंहझाँकते हैं फिर नदी में पेड़ झाँकते हैं फिर नदी में पेड़ विनय कुमार धनंजय सिंह 04/04/2012 No Comments झाँकते हैं फिर नदी में पेड़ पानी थरथराता है यह नुकीले पत्थरों का तल काटता है धार को प्रतिपल और तट की बाँबियों को छेड़ फिर कोई संपेरा गुनगुनाता है हर नदी का शौक़ है घड़ियाल कह न पातीं मछलियाँ वाचाल पूछती है एक काली भेड़ यह सूरज यहाँ क्यों रोज़ आता है Tweet Pin It Related Posts दिन क्यों बीत गए कक्षा से भटका हुआ उपग्रह हूँ लौटना पड़ेगा फिर-फिर घर About The Author विनय कुमार Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.