Homeअकबर इलाहाबादीमुझे भी दीजिए अख़बार मुझे भी दीजिए अख़बार शुभाष अकबर इलाहाबादी 13/02/2012 No Comments मुझे भी दीजिए अख़बार का वरक़ कोई मगर वह जिसमें दवाओं का इश्तेहार न हो जो हैं शुमार में कौड़ी के तीन हैं इस वक़्त यही है ख़ूब, किसी में मेरा शुमार न हो गिला यह जब्र क्यों कर रहे हो ऐ ’अकबर’ सुकूत ही है मुनासिब जब अख़्तियार न हो Tweet Pin It Related Posts हस्ती के शजर में जो यह चाहो कि चमक जाओ जो यूं ही लहज़ा लहज़ा दाग़-ए-हसरत की तरक़्क़ी है कोई हँस रहा है कोई रो रहा है About The Author शुभाष Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.