रूठा रूठा सा था, तू क्यूँ इतना
टूटा सा था, अंदर से क्यूँ इतना
छुपा रखा था, दर्द दिल मे कितना
हँसी का तूने, नकाब क्यूँ था पहना
शुरू किया था, अभी तू चलना
सफर को एक, अंजाम था देना
खुद को उस, काबिल था बनना
लोगो को गलत, साबित था करना
हर बात पर तेरा, यूँ ही हँसना
था आंखों में कुछ, करने का सपना
कम समय मे, शोहरत का मिलना
न कोई रिश्ता,फिर भी था अपना
संग अपनो से, साजिश करना
ऐसे दर्द समेटे, घूँट-घूँटकर जीना
एक बार तो कहता, समझकर अपना
गम को साझा, तुझको था करना
मुश्किलों से, क्यूँ था डरना
हालात से, तुझको था लड़ना
हक न था, यूँ छोड़कर जाना
अपनो के आंखों में,आंसू दे जाना
सत्य वचन !
धन्यवाद🙏
Kya khoob likha hai — Well done
Vijay
Thanks devesh ki🙏
Bhut sahi kaha aap aapne
Aapse nivedan hai kripyar mere post padhe jinke link
https://shrikrishna444.blogspot.com/?m=1
धन्यवाद🙏
और आपकी रचना भी अवश्य पढूंगा।